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वन नेशन, वन इलेक्शन’: विकास बनाम संघीय ढांचे पर नई बहस

“एक देश, एक चुनाव पर संसद में बहस: सरकार के दावे और विपक्ष के सवाल”

क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे चुनावी गतिविधियां सालभर चलती रहती हैं। यह व्यवस्था प्रशासनिक मशीनरी पर अतिरिक्त दबाव डालती है और विकास कार्यों को भी प्रभावित करती है।

सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव होने से चुनावी खर्च, समय, और संसाधनों की बचत होगी।


बिल के मुख्य प्रावधान

  1. लोकसभा और विधानसभा चुनाव का एकसाथ आयोजन।
  2. चुनाव प्रक्रिया के लिए संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव।
  3. राज्य और केंद्र स्तर पर समान अवधि के कार्यकाल को सुनिश्चित करने की कोशिश।
  4. चुनाव आयोग को बड़े पैमाने पर सुधार करने की शक्ति।

सरकार का दावा है कि यह प्रक्रिया लोकतंत्र को मजबूत करेगी और बार-बार चुनावों से होने वाली वित्तीय लागत को घटाएगी।


संसद में विरोध और समर्थन

विपक्षी दलों ने इस बिल को लेकर कई सवाल उठाए। उनका तर्क है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है और राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है। विपक्षी नेताओं ने कहा कि हर राज्य की अपनी चुनावी प्राथमिकताएं होती हैं, और उन्हें केंद्र के साथ जोड़ना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी ने इस बिल का समर्थन करते हुए कहा कि यह देश में राजनीतिक स्थिरता लाएगा और बार-बार चुनावों की वजह से विकास कार्यों में रुकावट को दूर करेगा।


विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की जरूरत होगी। इसमें अनुच्छेद 83अनुच्छेद 85अनुच्छेद 172, और अनुच्छेद 356 जैसे प्रावधानों में बदलाव जरूरी है।

एक अन्य चुनौती यह भी है कि यदि किसी राज्य सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त हो जाता है, तो उस स्थिति में चुनाव कैसे कराए जाएंगे, इसका समाधान अभी स्पष्ट नहीं है।


अर्थव्यवस्था पर असर

सरकार के अनुसार, बार-बार चुनाव कराने से हजारों करोड़ रुपये का खर्च होता है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से इन खर्चों में भारी कमी आएगी। इसके अलावा, चुनावी आचार संहिता के बार-बार लागू होने से विकास कार्यों में आने वाली रुकावट भी दूर होगी।


सार्वजनिक प्रतिक्रिया

जनता के बीच इस बिल को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे एक सकारात्मक कदम मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि यह राज्यों के अधिकारों पर चोट करेगा।


आगे की राह

यह बिल अभी संसद में पेश किया गया है और इस पर संसदीय समितियों के स्तर पर चर्चा होगी। इसके बाद इसे कानूनी रूप से लागू करने के लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी।


निष्कर्ष

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐतिहासिक और बड़ा कदम हो सक

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