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वरिष्ठ अधिवक्ता शिवबचन सरोज का बयान: कानून का दुरुपयोग

“घरेलू हिंसा मामलों में पुरुषों के अधिकारों की कमी”

वरिष्ठ अधिवक्ता शिवबचन सरोज ने बताया कि शादी के बाद घरेलू हिंसा को लेकर पुरुषों के पास अधिकार न के बराबर हैं। उनके पास सिर्फ तलाक लेने का अधिकार है, लेकिन घरेलू हिंसा होने पर वह लड़की के खिलाफ कोई केस नहीं कर सकते हैं।

कानून का हो रहा दुरुपयोग

शिवबचन सरोज ने बताया कि जब भारतीय कानून में बदलाव हुआ था और आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ली थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार 498ए की धारा में बदलाव की बात कही थी, क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा है।

हालांकि, केंद्र ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अभी भी महिलाएं कानून का दुरुपयोग कर रही हैं। उन्होंने बताया कि 498ए के तहत अगर कोई पुरष या उसके करीबी लोग किसी भी तरीके से लड़की को परेशान करते हैं तो उन्हें सजा हो सकती है। इसमें सात साल तक की सजा का प्रावधान है।

कौन है जिम्मेदार 

वकील ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने जान बूझकर गलत धाराएं लगाई। अप्राकृतिक यौन संबंध, मर्डर और यौन शोषण की धाराएं भी लगाई, जबकि इनका कोई सबूत नहीं था। जानकारी का अभाव में अतुल सुभाष को सही मदद नहीं मिल पाई।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मुफ्त में जानकारी हासिल करने की सुविधा है, लेकिन लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। अतुल सुभाष की मौत में समाज भी जिम्मेदार है, क्योंकि ऐसे मामलों में लोग पहले ही धारणा बना लेते हैं और जो व्यक्ति दबाव में है, उसकी मदद नहीं करते। कानून के लिहाज से भी अतुल सुभाष के पास तलाक के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ऐसे में सही कानून का अभाव भी इसके लिए जिम्मेदार है।

निकिता को हो सकती है सात साल की जेल

शिवबचन सरोज ने बताया कि अगर यह साबित होता है कि अतुल सुभाष को आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है तो उनकी पत्नी निकिता और अन्य जिम्मेदार लोगों को सात साल तक की सजा हो सकती है। हालांकि, इसमें लंबा समय लगेगा।

पुलिस की जांच के बाद चार्ज सीट फाइल होगी और इसके बाद अदालत अपना फैसला सुनाएगी। कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल होगा कि निकिता ने अतुल को आत्महत्या के लिए मजबूर किया, लेकिन अगर यह साबित होता है तो निकिता को जेल होने के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

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